आज के औद्योगिक साम्रज्यों का इतिहास
उद्योगपति धीरूभाई अंबानी ने रिलायंस का साम्रज्य खड़ा किया । धीरूभाई की सबसे बड़ी सिद्धि ये है कि भारत मे जिस तरह से ओद्योगिक साम्रज्य का लोग सिर्फ सपना देखते थे उसे धीरूभाई ने करके दिखाया। वह अकल्पनीय तेजी से ! स्वप्न और साहस इक्वलटू सफलता उनका गोल्डन सूत्र था। लेकिन यहां हम सिर्फ धीरूभाई अंबानी की बात नही करने वाले , हम यहां इस लेख में कुछ ऐसी ओद्योगिक साहस विरो की बात करेंगे जिन्होंने कसौटी भरे समय मे भी शून्य में से साम्रज्य खड़े किए । आज तो उनके साम्रज्य बहुत प्रसिद्ध है लेकिन उनके इतिहास से जुड़ी कुछ मजेदार बात हम आज जानेंगे !
01 ताले बनाते बनाते अरदेशर ने Godrej बना दी !

अरदेशर गोदरेज उनका नाम था । गोदरेज उनकी सरनेम थी । व्यवसाय से वकील थे । 19 वी सदी में वे एक वकीलात के सिलसिले में झांझीबार गए थे। अब केस में उनको झूठ बोलना पड़े ऐसी स्थितियों का निर्माण हुआ । लेकिन झूठ बोलना मंजूर न होने के कारण वकीलात को ही हमेंशा के लिए छोड़ दिया ! मुंबई वापिस आकर लाल बाग में 20 ₹ महीने भाड़े से एक शेड रखा और गुजराती और मलयालम कारीगरों को रोककर गोदरेज ब्रांड के ताले बनाने शरू किये।
गोदरेज के ताले के बाद तिजोरियां भी बनानी शरू की । बिना गाय की चर्बी का पहला बाथसोप भी लॉन्च किया। बाद में तो अरदेशर गोदरेज ने अपने भाई पिरोजशा के साथ मिलकर मुंबई के लाल बाग का शेड छोड़कर विक्रोली में भारत के पहले चुनाव के लिए मतपेटियां बनाई ! शेक्सपीयर ने भले ही कहा हो ‘what is in the name ? ‘ लेकिन आज कान पर जैसे ही गोदरेज शब्द पड़ता है कि गोदरेज ब्रांड के शेविंग क्रीम , रेफ्रिजरेटर , हेर डाई , शेम्पू , स्टील फर्नीचर जैसी अनेक चीजे आंखों के सामने आ जाती है ।
02 सुभाष चंद्र ने तो मूंगफली बेचते बेचते जी टीवी और एसेल्वर्ल्ड बना दिए !

सुभाषचंद्र सामान्य धंधा करते थे । बिना छिलके की मूंगफली की निकास करने का ! एक्सपोर्ट की दूसरी आइटम अरहर की दाल थी। निकास से होने वाली कमाई उन्होंने एसेल्वर्ल्ड में लगाई और फिर एसेल्वर्ड की कमाई जी टीवी में लगा दी ! फिर क्या जी टीवी आज भी आप देख रहे हो !
03 कैमल इंक का बादशाह !

फाउन्टन पेन की श्याही बनाने के लिए गेलिक एसिड और टार्टरिक का इस्तेमाल किया जाता है । इम्पोर्ट बिजनेश की मोनोपोली अंग्रेजो के पास थी । इसे तोड़ने के लिए महारष्ट्र के दिगम्बर परशुराम दांडेकर ने पेड़ो की लकड़ी में से ये दोनों रसायनों निकालकर श्याही तैयार की ! जिसका नाम रखा गया कैमल इंक ! जी हाँ , आज भी इसके प्रोडक्ट बिक रहे है । अब तो ये कंपनी कई सारी स्टेशनरी की आइटम बनाती है । देशभर में ब्रांचे है। पेड़ की लकड़ी से घरगठथु श्याही बनाने के लिए इस्तेमाल हो सकती है का विचार बीज आज केमेलिन नाम की बड़ी कंपनी बन गया है ।
04 जब टाटा टी लिमिटेड ने टेटली टी का धी एन्ड कर दिया ।

चाय का उत्पादन करने वाली टाटा टी लिमिटेड ने ब्रिटन की रिटेलर बाजार की कंपनी टेटली टी को खरीद लिया । लेकिन जो सौदा हुआ वह बिलीव ओर नॉट जैसा था ! क्योंकि वह सौदा चूहा बिल्ली को खा गया हो ऐसा था। टाटा टी लिमिटेड से टेटली टी की असक्यामतो की दृष्टि से दो गुनी बड़ी थी। फिर भी रतन ताता ने 27.1 करोड़ पाउंड ( उस समय के 1870 करोड़ ₹ ) देकर उसे खरीद ली !
05 हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट की स्थापना !

गुजरात के वांकानेर के निवासी निहालचंद भीमजी दोशी के प्रपौत्र वालचंद हीराचंद दोशी ने विमान बनाने के लिए हिंदस्तान एयरक्राफ्ट कंपनी की स्थापना की थी। लेकिन कंपनी के प्रोमोटर वे अकेले नही थे। तुलसीदास , धरमशी खटाउ और उनके सहयोगी उसमे शामिल थे। तीनो ने मिलकर लगभग 25,00,000 ₹ के शेर उस समय मे खरीद कर दिसम्बर 24 , 1940 के दिन बेंगलोर में कारखाना बनया और काम शरू किया । जुलाई , 1941 में भारत का पहला विमान बना ! वह भी मेड इन इंडिया ! गजब की स्पीड थी । सात महीने में कारखाना और सात महीने में पहला विमान बाहर भी निकाल दिया ! दूसरे विश्वयुद्ध में कंपनी का काम अच्छा रहा। काम इतना बढ़ गया था कि उस समय कंपनी में 13,000 लोग काम कर रहे थे । सालो बाद सरकार ने हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट को खरीद ली और नाम कर दिया हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ! जो आज भी बहेतरीन कंपनी मानी जाती है । जैगुआर , मिग 27 , प्रायोगिक एलसीए जैसे कई विमान और हेलीकॉप्टर कंपनी बनाती है ।
06 ताता कंपनी में नौकरी करते करते JEEP बना दी !

जगदीश और कैलाश एक समय ताता कंपनी में काम करते थे । अक्टूबर , 1945 में उन्होंने फौलाद आयात करने की कंपनी बनाई । नेपाल के राणा वंश के धनिकों ने उस कंपनी में पैसे लगाए ! पहले ताता कंपनी में फौलाद की खरीदी के लिए जगदीश को वॉशिंगटन में पर्चेस अफसर के रूप में नियुक्त किया था। वॉशिंगटन में लश्करी वाहन बनाती और विली नाम से जानी जाती कंपनी के मालिको के संपर्क में आया । मालिको को चिंता थी कि विश्वयुद्ध पूरा होने के बाद वाहन किसको बेचे ! ??? जगदीश ने मौका पकड़ लिया। भारत मे वाहन के स्थानिक उत्पादन के लिए विली के साथ सौदा किया ! वाहन का नाम रखा JEEP !
कहानी अभी बाकी है । भारत मे Jeep का उत्पादन करने वाले दोनों भाइयों का पूरा नाम जगदीश महिंद्र और कैलाश महिंद्र ! सन 1945 उन्होंने जो कंपनी बनाई उसका असल नाम महिंद्र एन्ड महम्मद था। ग़ुलाम मोहमद नाम का तीसरा हिस्सेदार था । अगस्त , 1947 के भारत विभाजन के बाद मोहमद पाकिस्तान के सर्वप्रथम नाणा प्रधान बने ! जनवरी 13 , 1948 में कंपनी का नाम बदलकर महिंद्र एन्ड महिंद्र कर दिया । आज की महिंद्रा कंपनी यही है । जिसकी एसयूवी 500 जैसी कारे आज विदेशों में भी एक्सपोर्ट हो रही है ।
07 VIP

हवाई स्लीपर या चप्पल जो लोग नही खरीद सकते थे उनके लिए प्लास्टिक के पी वी सी के चप्पल बना देने वाली कंपनी आज बहुत हाई क्वोलोटी सामान बनाती है। कंपनी का नाम ब्लो प्लास्ट और जो चीजे बनाती है उसका नाम वीआईपी लगेज !
08 Dabur का जन्म !

सन 1884 के अरसे में ड़ॉ एस के बर्मन नाम के बंगाली बाबू कलकत्ता में सकरी गली कॉटन स्ट्रीट में अस्पताल चलाते थे। उसके बाद उन्होंने कुछ आयुर्वेदिक दवाइया बनाना शरू किया। आज उनकी ये कंपनी Dabur के नाम से जानी जाती है । कैसे तो जान लीजिए कि डॉक्टर का नाम Dakterbabu Burman था । जिसका शार्ट फॉर्म Dabur बना ! हाजमोला की टेबलेट भी इन्ही की है ।
09 सहारा इंडिया

सन 1978 में सिर्फ 2000 ₹ लगाकर तीन क्लर्क को रोककर सुव्रत रॉय ने आज की लगभग खो चुकी सहारा इंडिया कंपनी बनाई थी । एक समय उसकी 20,000 करोड़ की वैल्यू थी , 6,00,000 लोग काम करते थे और भारत भर में 1957 जितनी ऑफिस थी ! इस महाकाय कंपनी में 12 बोइंग विमान वाली सहारा एयरलाइंस , सहारा टेलीविजन चेनल और दैनिक सहारा नाम के अखबार का समावेश होता था । साथ ही मेगेजीन्स , सेटेलाइट भूमिमथक और सहारा लेबल वाली 44 बाजारू प्रोडक्ट्स चलती थी । लेकिन आज ये कंपनी एक तरह से गायब ही हो गई हैं ।
10 एक अरब डॉलर से भी ज्यादा संपति वाले भारतीय उद्योगपति !
भारत के अजीम प्रेमजी , धीरूभाई अंबानी , कुमारमंगलम बिरला , लक्ष्मी मित्तल और शिव नादर जैसे उद्योगपति जैसे आज तो और कई उद्योगपति एक अरब डॉलर से भी ज्यादा संपति के स्वामी है । ताता कंपनी तो दुनिया के पूरे के पूरे देश खरीद ले उतनी धनवान है !